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आर्थिक असमानता: एक व्यापक दृष्टिकोण
आर्थिक असमानता, जो धन, आय, और संसाधनों के अनियमित वितरण को समाज में कहा जाता है, वर्तमान समय की सबसे बड़ी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं में से एक है। यह असमानता व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भी कार्य करती है। आर्थिक असमानता सामाजिक स्थिरता, आर्थिक प्रगति, और समूहों के बीच आपसी संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
आर्थिक असमानता के स्वरूप को चार भागों में बांटा जा सकता है:
- आय असमानता: वह स्थिति जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आय का वितरण असमान होता है।
- संपत्ति असमानता: संपत्तियों और संसाधनों में भिन्नता को दर्शाती है।
- लैंगिक असमानता: इसमें महिलाओं और पुरुषों के बीच अवसर और वेतन में अंतर होता है।
- क्षेत्रीय असमानता: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच संसाधनों और अवसरों के असमान वितरण को उजागर करती है।
भारत में आर्थिक असमानता
भारत में आर्थिक असमानता एक गंभीर समस्या है। [1] के अनुसार, देश की कुल संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा केवल 1% लोगों के पास है, जबकि निचले 50% लोगों के पास कुल संपत्ति का केवल 3% हिस्सा है। शहरी क्षेत्रों में रोजगार के बेहतर अवसर, उच्च वेतन, और समृद्ध जीवनशैली उपलब्ध हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी, शिक्षा की कमी, और गरीबी का बोलबाला है।
इसके अतिरिक्त,[2] के अनुसार, महिलाओं के लिए रोजगार और वेतन के अवसर पुरुषों की तुलना में सीमित हैं, जो लैंगिक असमानता को और गहरा करता है।
आर्थिक असमानता के कारण
आर्थिक असमानता के कई कारण हैं:
शैक्षणिक असमानता: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच न होना, गरीब वर्ग को पीछे छोड़ देता है। तकनीकी प्रगति: [3] की रिपोर्ट के अनुसार, स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने पारंपरिक नौकरियों का नुकसान किया है। वैश्वीकरण: [4]( के अनुसार, वैश्वीकरण ने विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक खाई को स्पष्ट कर दिया है।
आर्थिक असमानता का प्रभाव
सामाजिक असंतोष: असमानता समाज में अशांति और अस्थिरता को बढ़ावा देती है। आर्थिक विकास में बाधा: [5]के अनुसार, निम्न आय वर्ग की खपत क्षमता सीमित होती है, जो आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। शिक्षा और स्वास्थ्य: गरीब वर्ग बुनियादी सेवाओं तक पहुंच नहीं बना पाता, जिससे असमानता और बढ़ जाती है। समाधान के उपाय
- शिक्षा का सार्वभौमिकरण: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करना।
- समान रोजगार अवसर: [6]के अनुसार, समावेशी विकास नीतियों को अपनाने से असमानता कम की जा सकती है।
- भारी कर प्रणाली: उच्च आय वर्ग पर कर बढ़ाकर निचले वर्ग को लाभ पहुंचाना।
- समावेशितिवादी विकास नीतियां: [7] ने समावेशी विकास की सिफारिश की है।
निष्कर्ष
आर्थिक असमानता केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समानता और न्याय का भी प्रश्न है। यदि इसे समय पर नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह न केवल समाज की संरचना को कमजोर करेगा, बल्कि समग्र राष्ट्रीय विकास में भी बाधा उत्पन्न करेगा। अतः यह आवश्यक है कि सरकार, संगठनों और समाज के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा सामूहिक प्रयास किए जाएं ताकि आर्थिक असमानता को समाप्त किया जा सके।
- ^ (https://www.oxfamindia.org/knowledgehub/workingpaper/india-inequality-report-2022)
- ^ (https://www.unwomen.org/en)
- ^ (https://www.weforum.org/reports/global-risks-report-2020)
- ^ https://wid.world/document/the-indian-income-inequality-1922-2015/)
- ^ (https://www.worldbank.org/en/publication/poverty-and-shared-prosperity)
- ^ (https://hdr.undp.org/content/human-development-report-2022)
- ^ (https://www.indiabudget.gov.in/economicsurvey)